Monday, December 31, 2012

कविता : द्रौपदी की पुकार

                                                       - स्वप्ना  सिन्हा 

कृष्ण 
एक बार 
फिर से जन्म लो 
इस धरा  पर।
अवतार लिया तुमने 
द्वापर युग में,
पर 
तुम्हारी तो जरुरत है अधिक 
इस कलयुग में,
आज हजारों  द्रौपदियां 
पुकार रही हैं तुम्हें ,
हर गली मुहल्ले में 
मिल जाती है द्रौपदी 
पर मिलता नहीं कहीं 
एक भी कृष्ण।
सब ओर हैं 
दुर्योधन और दुःशासन ,
अगर कोई - कहीं है 
भीम, अर्जुन या  युधिष्ठिर,
कहाँ हैं - पता नहीं 
क्या कर रहे हैं - मालूम नहीं।
क्यों कि 
जब होता है 
चीरहरण और अत्याचार 
देखते  हैं सब मूक बने ,
जैसे वे हों  धृतराष्ट्र।
ऐसे में भी 
कृष्ण, 
क्या तुम्हे सुनायी नहीं देती 
एक भी द्रौपदी की पुकार ?
हे  कृष्ण ,
अब  तो  सुन  लो 
द्रौपदी  की पुकार !

                                                                     इसी  लाइफ  में . फिर  मिलेंगे।

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